लेखनी कविता - चिड़ियाघर - बालस्वरूप राही
चिड़ियाघर / बालस्वरूप राही
रोज खेलते रहे पार्क में
आज चलेंगे चिड़ियाघर
दूर-दूर से जहां जानवर
रखे गए हैं ला-ला कर।
थैलीदार पेट कंगारू-
का जाने कैसा होता,
उस में बच्चा उसका कैसे
खूब मज़े से हैं सोता।
देखें तो दरियाई घोडा
कैसे केला खाता है,
देखें बब्बर शेर किस तरह
गुस्से से गुर्राता है।